जिम्मेदारी के साथ विकास का सुचारु प्रबंधन आज की आवश्यकता

 


वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में जब औद्योगिक, तकनीकी और आर्थिक विकास अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ रहा है, तब उसके साथ-साथ सामाजिक उत्तरदायित्व, पर्यावरण संरक्षण और सुशासन की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। विकास अब केवल आर्थिक सूचकांकों या लाभ तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह इस बात से भी जुड़ा हुआ है कि विकास की प्रक्रिया समाज, पर्यावरण और भावी पीढ़ियों को किस प्रकार प्रभावित करती है। इसी गंभीर और प्रासंगिक विषय को केंद्र में रखते हुए श्री श्री विश्वविद्यालय के फ़ैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़ (FMS) द्वारा “मैनेजिंग ग्रोथ विद रिस्पॉन्सिबिलिटी: ESG, टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन” विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य विद्यार्थियों, शिक्षकों, शोधार्थियों और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों को जिम्मेदार विकास (Responsible Growth), ESG (Environmental, Social, Governance) और प्रौद्योगिकी आधारित नवाचार की अवधारणाओं से अवगत कराना था, ताकि भविष्य में वे न केवल कुशल पेशेवर बनें, बल्कि समाज और प्रकृति के प्रति सजग नागरिक भी बन सकें।


कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि एवं एक्सेंचर कंपनी के प्रबंध निदेशक साकेत कक्कड़ ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी सतत विकास के लिए एक मजबूत आधार के रूप में कार्य करती है। उन्होंने कहा कि तकनीक ने मानव जीवन को आसान बनाया है, उत्पादन क्षमता को बढ़ाया है और वैश्विक स्तर पर कनेक्टिविटी को सुदृढ़ किया है, लेकिन यदि इसका उपयोग बिना दूरदर्शिता और जिम्मेदारी के किया जाए, तो यही तकनीक सामाजिक असमानता, पर्यावरणीय क्षरण और संसाधनों के अत्यधिक दोहन का कारण भी बन सकती है। साकेत कक्कड़ ने कहा कि आज के समय में किसी भी संगठन के लिए केवल लाभ कमाना ही पर्याप्त नहीं है। संस्थानों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनका विकास पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए, समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाए और शासन प्रणाली पारदर्शी एवं नैतिक हो। उन्होंने ESG के चार प्रमुख स्तंभ—पर्यावरण, सामाजिक, शासन और रिपोर्टिंग/एकीकृतकरण—पर विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि ये स्तंभ किसी भी संगठन की दीर्घकालिक सफलता की आधारशिला हैं।


कार्यशाला के दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) तेजप्रताप ने अपने संबोधन में कहा कि श्री श्री विश्वविद्यालय शिक्षा को केवल डिग्री प्राप्त करने का माध्यम नहीं मानता, बल्कि इसे जीवन निर्माण की प्रक्रिया के रूप में देखता है। उन्होंने कहा कि फ़ैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़ स्वदेशी ज्ञान, कौशल और अनुसंधान के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ रहा है और यह विश्वविद्यालय की पहचान बन चुका है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रबंधन शिक्षा का उद्देश्य केवल कॉरपोरेट जगत के लिए मानव संसाधन तैयार करना नहीं है, बल्कि ऐसे नेतृत्व का निर्माण करना है जो समाज और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझे।


असम केंद्रीय विश्वविद्यालय से आईं डॉ. जोयिता देव ने अपने प्रेरणादायक उद्बोधन में भारतीय संस्कृति और दर्शन का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की विकास अवधारणा सदैव समावेशी रही है। उन्होंने संस्कृत सूक्ति “सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्” का उल्लेख करते हुए कहा कि यही विकास और प्रगति का वास्तविक उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि यदि विकास से समाज का कोई वर्ग पीछे छूट जाता है, तो वह विकास अधूरा माना जाएगा। डॉ. जोयिता देव ने यह भी कहा कि आज ESG, प्रौद्योगिकी और नवाचार केवल कॉरपोरेट शब्दावली नहीं हैं, बल्कि ये सामाजिक परिवर्तन के सशक्त माध्यम बन चुके हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे अपने करियर में नैतिक मूल्यों और सामाजिक उत्तरदायित्व को प्राथमिकता दें।


कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि एवं अदानी पोर्ट एंड लॉजिस्टिक्स के चीफ पीपल ऑफिसर (CPO) चिराग शाह ने कहा कि जिम्मेदारी के बिना किया गया विकास वास्तविक विकास नहीं होता। उन्होंने कहा कि कंपनियों को अब केवल शेयरहोल्डर्स के लाभ के बारे में नहीं, बल्कि स्टेकहोल्डर्स (जिनमें कर्मचारी, समाज, पर्यावरण और सरकार सभी शामिल हैं) के हितों के बारे में भी सोचना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में वही संस्थाएं टिक पाएंगी जो टैलेंट, प्रॉफिट और प्लानेट के बीच संतुलन बनाकर आगे बढ़ेंगी। चिराग शाह ने उद्योग जगत के अनुभव साझा करते हुए कहा कि ESG को अपनाने से न केवल संस्थाओं की साख बढ़ती है, बल्कि यह जोखिम प्रबंधन, निवेश आकर्षण और दीर्घकालिक स्थिरता में भी सहायक होता है। उन्होंने युवाओं को सलाह दी कि वे बदलते कॉरपोरेट परिवेश के अनुसार अपने कौशल और सोच को विकसित करें।


इस अवसर पर प्रबंधन, ESG और सतत विकास से संबंधित कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। इन पुस्तकों में समकालीन प्रबंधन चुनौतियों, जिम्मेदार नेतृत्व और सतत विकास लक्ष्यों पर केंद्रित विषयवस्तु को शामिल किया गया है, जो विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।


कार्यक्रम के अंत में विभागीय डीन प्रो. (डॉ.) बिप्लव बिश्वाल ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए भारतीय पुराणों में वर्णितसुर–नर–असुरप्रसंग का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ‘सुर’ संरक्षण और सृजन के प्रतीक हैं, जबकि ‘असुर’ विनाश का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने इस प्रसंग के माध्यम से यह संदेश दिया कि मनुष्य का व्यवहार ही तय करता है कि वह पृथ्वी का रक्षक बनेगा या विनाशक। उन्होंने कहा कि इस धरती पर मनुष्य की आवश्यकता के लिए सब कुछ है, लेकिन लोभ के लिए कुछ भी नहीं।


इसके बाद ‘उद्योगों में ESG के उपयोग और भविष्य निर्माण’ विषय पर एक संवादात्मक सत्र आयोजित किया गया, जिसमें अन्य अतिथीयों के साथ कलााहांडी विश्वविद्यालय से आए हुए डॉ. मधुलिका साहू ने विद्यार्थियों के प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिया। उन्होंने बताया कि कैसे विभिन्न उद्योग ESG फ्रेमवर्क को अपनाकर अपने संचालन को अधिक पारदर्शी, टिकाऊ और सामाजिक रूप से उत्तरदायी बना रहे हैं।


कार्यशाला के दौरान दो तकनीकी सत्र (ESG जनरल और ESG फाइनेंस) का आयोजन किया गया। इन सत्रों में ESG की अवधारणात्मक समझ, वित्तीय दृष्टिकोण, जोखिम मूल्यांकन और निवेश रणनीतियों पर गहन चर्चा हुई। इन सत्रों की अध्यक्षता एवं उपाध्यक्षता में डॉ. भवानी शंकर राउत, डॉ. जेस्मिन भुईयाँ, डॉ. विनिता नंद, डॉ. सरिता मिश्रा और डॉ. गिरिधारी महांत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


कार्यशाला में अर्पिता साहाणी, प्रमिला शतपथी, डॉ. अभिश्वेता नंदी, अभिप्सा दास, सारका नकुल, डॉ. संजू शर्मा, गुणधर माझी, जगमोहन डेलमिया, गायत्री महापात्र, सूर्यकांत साहू, डॉ. प्रसन्न कुमार राउत, प्रतीक्षा राय, विक्रमादित्य मल्लदेव और अन्वेषा पाढ़ी सहित अनेक शोधार्थियों ने अपने-अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। इन शोध पत्रों में ESG, सतत विकास, प्रबंधन नवाचार और सामाजिक उत्तरदायित्व जैसे विषयों को विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रस्तुत किया गया। पूरे कार्यक्रम का कुशल और प्रभावी संचालन डॉ. भरत दाश ने किया। उन्होंने डॉ. शरणिका धल और दुसरों के साथ सत्रों के दौरान वक्ताओं और प्रतिभागियों के बीच संवाद को जीवंत बनाए रखा, जिससे कार्यशाला अधिक प्रभावशाली और सहभागितापूर्ण बनी।


कुल मिलाकर, यह दो दिवसीय कार्यशाला न केवल अकादमिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रही, बल्कि इसने यह भी स्पष्ट किया कि भविष्य का विकास तभी सार्थक होगा जब वह जिम्मेदारी, नैतिकता, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समावेशन के साथ आगे बढ़े। श्री श्री विश्वविद्यालय की यह पहल विद्यार्थियों, शिक्षकों और उद्योग जगत के लिए सतत और समावेशी विकास की दिशा में एक मजबूत संदेश के रूप में सामने आई।

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