Garima Rasali: From Challenges to Triumph, the Emerging Nursing Queen
Some stories touch the heart. Some faces make you feel, “Yes, this girl will
achieve something big.” One such story is that of Garima Rasali.
With roots in Nepal, nurtured in the soil of Odisha, and now emerging as an
inspiring personality from the campus of Sri Sri University.
Sri Sri University is not just a place for
academics, but a ground where confidence and character are shaped. Every
student here learns to recognize their inner potential. This environment
polished Garima Rasali. Today, she is a third-semester B.Sc. Nursing student.
But her identity is not limited to being a “nursing student.” She is a dreamer,
a fighter for her dreams, and someone who works to make them come true.
Garima’s family roots go back to Nepal, but her
childhood, education, and values all blossomed in Odisha. Her father, Bhuvendra Kumar
Rasali, is a brave officer serving in the Odisha Special Armed
Police (OSAP). Growing up in a police family, Garima learned discipline,
courage, and confidence from the beginning- values that became the foundation
of her life.
The day she entered the Sri Sri College
of Nursing, she planted a dream in her heart:
“One day, I
must wear the crown of Miss SNA. And after that, reach Miss TNAI.” For
her, this was not just about winning a title, but a way to prove herself.
Alongside academics, Garima is equally active
in NSS
and NCC. While pursuing her studies at the Nursing College of Sri
Sri University, she actively participated in social service activities such as
environmental protection drives, tree plantation, anti-plastic campaigns and
anti-addiction awareness programs. She was always at the forefront. Her
presence in cultural and social events of the college almost guaranteed
success.
The Golden Opportunity
Then came the day…
30–31
August, KIIT University, Bhubaneswar.
The grand biennial conference of the state Student Nurses’ Association of India (SNAI). The
stage was glittering, the atmosphere electric and in the center stood Garima, radiant
with confidence. Over 24 contestants from various institutions were competing.
Everyone’s face was lit with hope and dreams, but Garima’s determination stood
out.
Round 1:
Traditional & Cultural
Garima walked the stage as a Kumari girl
of the Newar tribe from Nepal, dressed in rose-red attire, with a red tilak
on her forehead, white and black dots above it, earrings sparkling, and a
crown of ten red roses radiating like a divine aura. Her traditional jewellery
enhanced her goddess-like appearance. When she explained, “In Nepal, Kumari girls are
worshipped as living Hindu Goddesses,” the entire hall was
mesmerized. The judges instantly selected her for the next round.
Round 2:
Modern & Contemporary
Now came the tough questions. The panel asked: “Should India take back Kashmir
from Pakistan?” Without hesitation, Garima replied, “Kashmir is an
integral part of India. It was never a part of Pakistan.” A
bold and clear answer. The auditorium echoed with applause, and Garima advanced
to the third round.
Round 3:
The True Test of Personality
The final and most challenging round- Personality round. This was where
Garima’s confidence and clarity of thought were tested.
Question: “What is the power that women have, but men don’t ?”
Garima, smiling, answered: “The power to give birth. Labor pain is said to be as
severe as a heart attack, yet a mother endures it for her child. That is a
woman’s true strength.”
Another question: “What three qualities are
essential for a man to become great ?”
Her reply: “Consistency,
patience and discipline. If a man sincerely follows these three, success is
inevitable.” The judges could not help but be impressed.
Finally, the much-awaited moment arrived. The
name was announced, “Garima Rasali !”
Dressed in her NCC uniform, Garima walked to the stage as the Miss SNA crown
was placed on her head. The hall erupted in applause. Her friends cheered and
her eyes sparkled with the shine of dreams turning into reality.
But Garima’s journey doesn’t stop here. Her
next destination is Miss TNAI, to be held in November at
Pune, Maharashtra a national level competition where state winners will face
off. Representing Odisha will be none other than Garima Rasali. Her
hard work, courage and confidence clearly show that she will make her mark
there as well.
Garima’s story is not just about winning a
contest. It carries a message: if you have consistency, patience and
discipline, no dream is impossible. Today, she is an
inspiration for thousands of students. Now the question is, will Garima create
history in Pune as well ? The eyes of all Odisha and Nepal are set on her. And
we firmly believe, her journey has only just begun, with greater heights
waiting ahead.
This is the story of Garima Rasali- a nursing student, who with her passion, is not only shaping her own future but also inspiring generations to come.
गरिमा रसाली : संघर्ष से मुक़ाम तक
नर्सिंग की उभरती रानी
कुछ
कहानियाँ दिल को छू जाती हैं। कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जिन्हें देख कर
लगता है- “हाँ, यह लड़की कुछ बड़ा करेगी।” ऐसी ही एक कहानी है
गरिमा रसाली की। नेपाल से जुड़ी जड़ें, पर ओड़िशा की मिट्टी
में पली-बढ़ी, और अब श्री श्री यूनिवर्सिटी के आँगन से निकली
एक प्रेरणादायक शख़्सियत।
श्री श्री
यूनिवर्सिटी सिर्फ़ पढ़ाई की जगह नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और व्यक्तित्व
गढ़ने का स्थान है। यहाँ का हर विद्यार्थी अपने भीतर छिपे सामर्थ्य को पहचानता है।
इसी वातावरण ने गरिमा रसाली को तराशा। वह आज बी.एससी. नर्सिंग की तृतीय सेमेस्टर
की छात्रा हैं। लेकिन उनकी पहचान सिर्फ़ “नर्सिंग स्टूडेंट” तक सीमित नहीं। वे एक
सपने देखने वाली, सपनों के लिए लड़ने वाली और उन्हें सच करने
वाली लड़की हैं।
गरिमा का
घर नेपाल से जुड़ा है। लेकिन उनका बचपन, शिक्षा और संस्कार सब ओड़िशा की
मिट्टी से ही मिले। उनके पिता भुवेंद्र कुमार रसाली, ओड़िशा
स्पेशल आर्म्ड पुलिस (ओएसएपि) में कार्यरत एक साहसी जवान हैं। एक पुलिस परिवार में
पलने-बढ़ने से गरिमा ने बचपन से ही सीखा अनुशासन, साहस और
आत्मविश्वास। यही मूल्य उनकी ज़िंदगी का आधार बन गए।
श्री श्री
कॉलेज ऑफ नर्सिंग में दाख़िला लेते ही गरिमा ने अपने दिल में एक सपना बसा लिया, “मुझे एक दिन मिस एसएनए का ताज पहनना है। और उसके बाद मिस टिएनएआइ तक
पहुँचना है।” यह सपना उनके लिए सिर्फ़ एक खिताब पाने की चाह नहीं था, बल्कि खुद को साबित करने का एक जरिया था।
गरिमा
पढ़ाई में जितनी आगे हैं, उतनी ही सक्रिय एन.एस.एस. और एन.सी.सी. की गतिविधियों में भी। उन्होने
श्री श्री विश्वविद्यालय के श्री श्री नर्सिंग महाविद्यालय में अध्ययन करते हुए समाज
सेबा कार्यकलाप जैसे कि पर्यावरण सुरक्षा अभियान, वृक्षारोपण, प्लास्टिक मुक्ति अभियान
और नशा मुक्ति जागरूकता आदि में सक्रिय रूप से हिस्सा लेती है । हर जगह वे सबसे
आगे रहती हैं। कॉलेज के सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में उनकी मौजूदगी मानो
सफलता की गारंटी होती है।
वह सुनहरा मौका
फिर आया
वह दिन…
30-31 अगस्त, किट यूनिवर्सिटी, भुवनेश्वर।
स्टूडेंट
नर्सेस एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसएनएआइ) का द्विबार्षिक भव्य सम्मेलन। मंच जगमगा रहा
था, चारों ओर उत्साह, और बीच में खड़ी थीं गरिमा -
सम्पूर्ण आत्मविश्वास के साथ। इस प्रतियोगिता में बिभिन्न संस्थानों की 24 से अधिक छात्राएँ भाग ले रही थीं। हर किसी के चेहरे पर उम्मीद, दिल में सपने। लेकिन गरिमा का जज़्बा सबसे अलग था।
पहला राउंड: पारंपरिक एवं सांस्कृतिक
य़ह था ट्रेड़ीशनाल
और कलचराल यानी पारंपरिक और सांस्कृतिक राउण्ड। गरिमा मंच पर उतरीं नेपाल की नेवार जनजाति की “कुमारी”
कन्या के रूप में। गूलावी परिधान के साथ
माथे पे लाल तिलक, उसके उपर सफेद और काला बिन्दी, कानों में झुमकेवाली बालियां और
माथे पे पूरे दश लाल गुलाब की रक्तिम ताज । पारंपरिक गहने के साथ देवी जैसी आभा
में झटक रहि थीं गरिमा । जब उन्होंने बताया कि “कुमारी कन्याओं को नेपाल में जीवित
देवी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है” तो पूरा सभागार मंत्रमुग्ध हो गया। निर्णायकों
ने तुरंत उन्हें अगले राउंड के लिए चुन लिया।
दूसरा राउंड: आधुनिक एवं समकालीन
अब बारी
थी कठिन सवालों की। द्वितीय राउण्ड था माँडर्न और काँन्टेम्परारी यानी आधुनिक एवं
समकालीन राउण्ड। विचारकों ने पूछा, “क्या भारत को कश्मीर पाकिस्तान से
वापस लेना चाहिए ?” गरिमा ने बिना झिझक कहा, “कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। यह कभी भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं था।” साहसिक
और स्पष्ट उत्तर। सभागार तालियों से गूंज उठा। और गरिमा पहुँच गईं तीसरे राउंड
में।
तीसरा राउंड: व्यक्तित्व की असली पहचान
एक मॉडलिंग
प्रतियोगिता में आख़िरी
और सबसे चुनौतीपूर्ण राउंड होता है पर्सनालिटी या व्यक्तित्व की असली पहचानवाला
राउण्ड। यहाँ गरिमा के आत्मविश्वास और सोच की असली परीक्षा होनी थी। सवाल आया, “महिलाओं के पास ऐसी कौन सी शक्ति है
जो पुरुषों के पास नहीं होती ?” गरिमा ने मुस्कराते हुए कहा,
“संतान को जन्म देने की शक्ति। प्रसव पीड़ा हृदयाघात जैसी
होती है, लेकिन माँ अपने बच्चे के लिए उसे सहती है। यही
महिला की असली ताक़त है।” एक और सवाल, “किसी पुरुष को श्रेष्ठ बनने के लिए तीन बातें कौन-सी ज़रूरी हैं ?” गरिमा का जवाब था, “कन्सिस्टेन्सी यानी संगति, पैसेन्स यानी धैर्य
और डिसिप्लिन यानी अनुशासन। अगर कोइ पुरुष सिद्दत से यह तिन चिजों को पालन करता है
तो उनका बिजय अवश्यम्भावी।” जजों ने इस उत्तर से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।
आख़िरकार
वह क्षण आया, जिसका गरिमा इंतज़ार कर रही थीं। मंच पर नाम पुकारा गया- “गरिमा रसाली !” एन.सी.सी. की वर्दी में सजी गरिमा मंच पर पहुँचीं और उनके
सिर पर सज गया “मिस-एसएनए” का ताज। हॉल
तालियों से गूंज उठा। दोस्तों ने खुशी से झूमकर उनका स्वागत किया। और गरिमा की
आँखों में चमक थी- सपने पूरे होने की चमक।
गरिमा का
सफ़र यहीं नहीं रुकता। अब उनकी मंज़िल है नवंबर में पुणे (महाराष्ट्र) में होने
वाली मिस टिएनएआइ प्रतियोगिता। यह अखिल भारतीय स्तर का मंच है। यहाँ राज्य स्तर के
विजेता आमने-सामने होंगे। और ओड़िशा की ओर से प्रतिनिधित्व करेंगी- गरिमा रसाली। उनकी
मेहनत, साहस और आत्मविश्वास बता रहा है कि वे वहाँ भी अपनी पहचान बनाएँगी।
गरिमा की
कहानी सिर्फ़ एक प्रतियोगिता जीतने की कहानी नहीं है। यह संदेश देती है, अगर आपके
पास संगति, धैर्य और अनुशासन है, तो कोई भी सपना असंभव नहीं। वे
आज हज़ारों छात्रों के लिए प्रेरणा हैं। अब सवाल है- क्या गरिमा पुणे में भी
इतिहास रचेंगी ? तमाम ओड़िशा और नेपाल की नज़रें उन पर टिकी
हैं। और हमें पूरा विश्वास है कि उनका सफ़र अभी और भी ऊँचाइयाँ छुएगा।
यह थी
कहानी गरिमा रसाली की- एक नर्सिंग छात्रा, जो अपने जुनून से न सिर्फ़ अपना
भविष्य गढ़ रही हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी
प्रेरणा बन रही हैं।
ଗରିମା ରସାଲି : ସଂଘର୍ଷରୁ ସଫଳତା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ
ନର୍ସିଂ ଜଗତର ଉଦିୟମାନ ରାଣୀ
ଶ୍ରୀ ଶ୍ରୀ
ବିଶ୍ୱବିଦ୍ୟାଳୟ । ନାମରୁ ହିଁ ଅନୁଭବ କରିହୁଏ ଅପୂର୍ବ ଏକ ଶାନ୍ତି, ଅନିର୍ବଚନୀୟ ଆନନ୍ଦ ।
ଏଠାରେ ଯିଏ ଅଧ୍ୟୟନ କରେ, ସେ କ୍ରମଶଃ ହୋଇଉଠେ ସର୍ବଗୁଣସମ୍ପନ୍ନ । ଏଠାରେ ଅଧ୍ୟୟନ କରୁଥିବା
ପ୍ରତ୍ୟେକ ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀଙ୍କ ମନରେ ଆତ୍ମବିଶ୍ୱାସ ପୂର୍ବାପେକ୍ଷା ହୋଇଉଠେ ଦ୍ୱିଗୁଣିତ । ଜାବନରେ
କିଛି ଗୋଟିଏ କରିବାର ଦୃଢ଼ ଲକ୍ଷ୍ୟରେ ସେମାନେ ଆଗେଇଯା’ନ୍ତି । ଅଦ୍ୟାବଧି ଏଠାରୁ ଉତ୍ତୀର୍ଣ୍ଣ ହୋଇଥିବା ହଜାର ହଜାର ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ
ସାରା ବିଶ୍ୱର କୋଣ ଅନୁକୋଣରେ ଭରି ରହିଛନ୍ତି ଅଗଣିତ । ସେମାନେ ଆଜି ଶ୍ରୀ ଶ୍ରୀ
ବିଶ୍ୱବିଦ୍ୟାଳୟ ପାଇଁ ଗର୍ବିତ । ଶ୍ରୀ ଶ୍ରୀ ବିଶ୍ୱବିଦ୍ୟାଳୟ ମଧ୍ୟ ସେମାନଙ୍କୁ ଏକଦା ନିଜ
କୋଳରେ ଧରି ନିଜକୁ ଧନ୍ୟ ମନେ କରିଆସିଛି ।
ସେମିତି ଜଣେ ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀ
ହେଉଛନ୍ତି ଶ୍ରୀ ଶ୍ରୀ ବିଶ୍ୱବିଦ୍ୟାଳୟ ଅନ୍ତର୍ଗତ ଶ୍ରୀ ଶ୍ରୀ ନର୍ସିଂ ମହାବିଦ୍ୟାଳୟର
ବି.ଏସସି. ନର୍ସିଂ ବିଭାଗ ତୃତୀୟ ସେମିଷ୍ଟରରେ ଅଧ୍ୟୟନ କରୁଥିବା ଗରିମା ରସାଲି । ଘର ନେପାଳ
ହୋଇଥିଲେ ମଧ୍ୟ ତାଙ୍କ ଜନ୍ମ ଓ ଶିକ୍ଷାଦୀକ୍ଷା ସବୁକିଛି ଭାରତରେ, ବରଂ ଏହା କହିଲେ ଅଧିକ
ପ୍ରାସଙ୍ଗିକ ହେବ ଯେ, ଓଡ଼ିଶାରେ । ପିତା ଭୁବେନ୍ଦ୍ର କୁମାର ରସାଲି ଓଡ଼ିଶା ବିଶେଷ ସଶସ୍ତ୍ର
ଆରକ୍ଷୀ ବାହିନୀ (ଓଏସଏପି)ରେ କର୍ତ୍ତବ୍ୟରତ ଜଣେ ଜବାନ । ତେଣୁ ଗରିମାଙ୍କ ଜନ୍ମ ଓଡ଼ିଶାରେ । ପାଠପଢ଼ା ମଧ୍ୟ ଓଡ଼ିଶାରେ । ଘରେ ଓଡ଼ିଆରେ କଥା ହେଉ
ନ ଥିଲେ ମଧ୍ୟ ନିଜ ଉଦ୍ୟମରେ ବେଶ୍ କିଛିଟା ଓଡ଼ିଆ ଶିଖିଯାଇଛନ୍ତି ଗରିମା । ପିଲାଟି ଦିନରୁ
ତାଙ୍କ ଭିତରେ ଲଢୁଆ ମନୋବୃତ୍ତି ରହି ଆସିଛି । କୌଣସି କାର୍ଯ୍ୟରେ ଥରେ ମନୋନିବେଶ କଲେ, ତା’କୁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ନ କରିବା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ତାଙ୍କ ଆଖିରେ ନିଦ ନ ଥାଏ । ଶ୍ରୀ ଶ୍ରୀ ନର୍ସିଂ
ମହାବିଦ୍ୟାଳୟରେ ଅଧ୍ୟୟନ କରିବା ସମୟରୁ ହିଁ ତାଙ୍କ ମନର ନିଭୃତ କୋଣରେ ବସା ବାନ୍ଧିଥିଲା
ଆଶାଟିଏ । କିଭଳି ସେ ଷ୍ଟୁଡେଣ୍ଟ ନର୍ସେସ୍ ଆସୋସିଏସନ୍ ଅଫ୍ ଇଣ୍ଡିଆ (ଏସଏନଏଆଇ) ଦ୍ୱାରା
ପ୍ରଦତ୍ତ ମିସ୍ ଏସଏନଏ ଟାଇଟଲ୍ ହାସଲ କରିବେ । ଖାଲି ସେତିକି ନୁହେଁ, ସର୍ବଭାରତୀୟ ସ୍ତରରେ
ଟ୍ରେଣ୍ଡ୍ ନର୍ସେସ୍ ଆସୋସିଏସନ୍ ଅଫ୍ ଇଣ୍ଡିଆ (ଟିଏନଏଆଇ) ପକ୍ଷରୁ ପ୍ରଦତ୍ତ ମିସ୍ ଟିଏନଏଆଇ
ଟାଇଟଲ୍ ହାସଲ କରିବା ମଧ୍ୟ ତାଙ୍କ ଜୀବନର ଅନ୍ୟତମ ଲକ୍ଷ୍ୟ । ସେଥିପାଇଁ ସେ ଏଠାରେ ନାମ
ଲେଖାଇବା ଦିନଠାରୁ ନିଜକୁ ସର୍ବୋତ ଭାବରେ ପ୍ରସ୍ତୁତ କରୁଥିଲେ ।
ଜଣେ ଅଗ୍ରଣୀ ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀ
ଭାବରେ ମହାବିଦ୍ୟାଳୟ ଜାତୀୟ ସମର ଶିକ୍ଷାର୍ଥୀ ବାହିନୀର କ୍ୟାଡେଟ୍ ଭାବରେ ଏସଏସୟୁ ପରିସର ସମେତ
ନିକଟସ୍ଥ ଅଞ୍ଚଳରେ ପରିବେଶ ସୁରକ୍ଷା ହେଉ ଅବା ବୃକ୍ଷରୋପଣ, ପ୍ଲାଷ୍ଟିକ୍ ନିରୋଧୀ ଅଭିଯାନ ହେଉ
କିମ୍ବା ନିଶା ନିବାରଣ ଏ ସବୁକିଛିରେ ଅଗ୍ରଣୀ ଭୂମିକା ତୁଲାଇଥା’ନ୍ତି ଗରିମା । ପାଠପଢ଼ା ସାଙ୍ଗକୁ ବିଶ୍ୱବିଦ୍ୟାଳୟ ସ୍ତରରେ ବିଭିନ୍ନ ସ୍ୱେଚ୍ଛାସେବୀ ଓ ସାଂସ୍କୃତିକ
କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମରେ ସକ୍ରିୟ ଭାବରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରି ଆସୁଛନ୍ତି ଗରିମା । ନର୍ସିଂ ବୃତ୍ତିରେ ନିଜର
ଶତ ପ୍ରତିଶତ ବିନିଯୋଗ କରିବା ସହ ଏହାକୁ ଜୀବନର ବ୍ରତ କରିବାକୁ ପଣ କରିଛନ୍ତି ସିଏ ।
ଏପରି ସମୟରେ ଆସି ପହଞ୍ଚେ
ଷ୍ଟୁଡେଣ୍ଟ ନର୍ସେସ୍ ଆସୋସିଏସନ୍ ଅଫ୍ ଇଣ୍ଡିଆ (ଏସଏନଏଆଇ) ପକ୍ଷରୁ ଆୟୋଜିତ ଦ୍ୱିବାର୍ଷିକ
ସମ୍ମିଳନୀ । ଏହା ପ୍ରତ୍ୟେକ ଦୁଇ ବର୍ଷରେ ଥରେ ରାଜ୍ୟର କୌଣସି ଏକ ବିଶ୍ୱବିଦ୍ୟାଳୟରେ ଆୟୋଜିତ
ହୋଇଥାଏ । ଚଳିତ ବର୍ଷ ଅଗଷ୍ଟ ମାସ 30 ଓ 31 ତାରିଖ ଦୁଇଦିନ ଧରି ଏହା ଭୁବନେଶ୍ୱରସ୍ଥିତ କିଟ୍
ବିଶ୍ୱବିଦ୍ୟାଳୟ ପରିସରରେ ଆୟୋଜିତ ହୋଇଥିଲା । ଏଥିରେ ମିସ୍ ଏସଏନଏ ମୁକୁଟ ନିମନ୍ତେ ହେଉଥିବା
ପ୍ରତିଯୋଗିତା ପାଇଁ ଖୋଲା ଆହ୍ୱାନ ଦିଆଯାଇଥିଲା । କହିବା ବାହୁଲ୍ୟ, ଦୀର୍ଘଦିନରୁ ଏହି ସୁଯୋଗ
ଅପେକ୍ଷାରେ ଥିବା, ସେଥିପାଇଁ ସର୍ବାନ୍ତକରଣରେ ନିଜକୁ ପ୍ରସ୍ତୁତ କରୁଥିବା ଗରିମା କାଳବିଳମ୍ବ ନ
କରି ଏଥିରେ ଭାଗ ନେଇଥିଲେ । ଶ୍ରୀ ଶ୍ରୀ କଲେଜ ଅଫ୍ ନର୍ସିଂ ବା ଶ୍ରୀ ଶ୍ରୀ ବିଶ୍ୱବିଦ୍ୟାଳୟକୁ
ପ୍ରତିନିଧିତ୍ୱ କରୁଥିବା ଗରିମାଙ୍କ ପାଇଁ ଆରମ୍ଭରୁ ପଥ ଥିଲା କଣ୍ଟକାକୀର୍ଣ୍ଣ । ଏହି
ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ବିଭିନ୍ନ ନର୍ସିଂ ଅନୁଷ୍ଠାନର ପ୍ରାୟ 25ରୁ ଅଧିକ ପ୍ରତିଯୋଗୀ ଭାଗ ନେଇଥିଲେ ।
ସମସ୍ତେ ଥିଲେ ଏକୁ ଆରେକ ବଳି । ନିଜ ଅନୁଷ୍ଠାନର ବଛା ବଛା ପ୍ରତିଯୋଗୀ । ତେବେ ଏହି
ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଥିଲା ତିନିଟି ରାଉଣ୍ଡ । ଯଥା: ଟ୍ରାଡିସନାଲ୍ ଆଣ୍ଡ୍ କଲଚରାଲ୍ (ପାରମ୍ପରିକ ଓ ସାଂସ୍କୃତିକ) ରାଉଣ୍ଡ୍ । ଯେଉଁଥିରେ
ପ୍ରତିଯୋଗୀ ନିଜ ସମ୍ପର୍କରେ ସମ୍ୟକ୍ ସୂଚନା ଦେବାସହ ନିଜ ସଂସ୍କୃତିକୁ ପ୍ରତିଫଳିତ କରୁଥିବା ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର
ଧରଣର ପୋଷାକ ପରିପାଟୀ ପରିଧାନ କରିଥା’ନ୍ତି । ସେମାନଙ୍କୁ ନିଜ ପୋଷାକ ପରିପାଟୀ ସମ୍ପର୍କରେ ମଧ୍ୟ ବିସ୍ତୃତ ବିବରଣୀ ଦେବାକୁ
ପଡ଼ିଥାଏ । ଦ୍ୱିତୀୟ ରାଉଣ୍ଡ୍ ହେଉଛି ମଡର୍ଣ୍ଣ ଆଣ୍ଡ୍ କଣ୍ଟେମ୍ପରାରୀ ରାଉଣ୍ଡ୍ । ଏଥିରେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରତିଯୋଗୀଙ୍କୁ ବିଭିନ୍ନ ପରୀକ୍ଷା ଦେଇ ଗତି କରିବାକୁ ପଡ଼ିଥାଏ । ସବାଶେଷରେ
ପର୍ସନାଲିଟି ରାଉଣ୍ଡ, ଏଥିରେ ବିଚାରକମଣ୍ଡଳୀ ପ୍ରତିଯୋଗୀଙ୍କ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ୱକୁ ପରଖିଥା’ନ୍ତି ।
ଆରମ୍ଭ ହେଲା ମିସ୍ ଏସଏନଏ
ପ୍ରତିଯୋଗିତାର ପ୍ରଥମ ରାଉଣ୍ଡ୍ । ଟ୍ରାଡିସନାଲ୍ ଆଣ୍ଡ୍ କଲଚରାଲ୍ (ପାରମ୍ପରିକ ଓ ସାଂସ୍କୃତିକ)
ରାଉଣ୍ଡ୍ । ଏଥିରେ ଗରିମା ଭିନ୍ନ କିଛି କରି ଦେଖାଇବାର ଜୋଶରେ ନିଜ ଦେଶ ନେପାଳର ଏକ ପାରମ୍ପରିକ
ବେଶ ପରିପାଟୀରେ ନଜର ଆସିଥିଲେ । ସେଠାକାର ଆଦିବାସୀ ନେୱାର ଜନଜାତି କୁମାରୀ କନ୍ୟାମାନଙ୍କୁ
ଦେବୀଙ୍କ ଜୀବିତ ସ୍ୱରୁପ ଭାବରେ ପୂଜା କରନ୍ତି । ଉକ୍ତ କୁମାରୀ କନ୍ୟାମାନଙ୍କୁ ସେମାନେ ପିନ୍ଧାଉଥିବା
ପାରମ୍ପରିକ ପୋଷାକରେ ଟ୍ରାଡିସନାଲ୍ ରାଉଣ୍ଡରେ ଅବତୀର୍ଣ୍ଣ ହେଲେ ଗରିମା । ଖାଲି ଭାଗ ନେଲେ
ନାହିଁ, ନିଜ ପୋଷାକ ପରିପାଟୀ ସମ୍ପର୍କରେ ବିସ୍ତୃତ ବିବରଣୀ ଜରିଆରେ ବିଚାରକମାନଙ୍କ ମନ
ଜିଣିନେଲେ । ଦ୍ୱିତୀୟ ପର୍ଯ୍ୟାୟକୁ ଉତ୍ତୀର୍ଣ୍ଣ ହୋଇଥିବା 12 ପ୍ରତିଯୋଗୀଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ସ୍ଥାନ
ପାଇଲେ ଗରିମା ।
ଦ୍ୱିତୀୟ ପର୍ଯ୍ୟାୟ
ମଡର୍ଣ୍ଣ ଆଣ୍ଡ୍ କଣ୍ଟେମ୍ପରାରୀ ରାଉଣ୍ଡରେ ପ୍ରତିଯୋଗୀମାନଙ୍କୁ ବିଚାରକ ମଣ୍ଡଳୀର ବହୁ କାଠିକର
ପ୍ରଶ୍ନର ସମ୍ମୁଖୀନ ହେବାକୁ ପଡ଼ିଥିଲା । ସେଥରୁ ଯେଉଁମାନେ ପରବର୍ତ୍ତୀ ପର୍ଯ୍ୟାୟକୁ ଉନ୍ନୀତ
ହେଲେ, ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଥିଲା ଗରିମାଙ୍କ ସ୍ଥାନ । ଗରିମାଙ୍କୁ ମଡର୍ଣ୍ଣ ଏବଂ କଣ୍ଟେମ୍ପରାରୀ ରାଉଣ୍ଡ୍ରେ ପ୍ରଶ୍ନ ଥିଲା, “ପାକିସ୍ତାନଠାରୁ କାଶ୍ମୀରକୁ ଭାରତ ଛଡ଼ାଇ ଆଣୁ ବୋଲି ତୁମେ ଚାହିଁ କି
?” ତାଙ୍କ ଉତ୍ତର ଥିଲା, “କାଶ୍ମୀର ହେଉଛି ଭାରତର ଅବିଚ୍ଛେଦ୍ୟ ଅଙ୍ଗ, ଏହା କେବେ ବି
ପାକିସ୍ତାନର ନ ଥିଲା ।” ତାଙ୍କର ଏହି ଉତ୍ତର ତାଙ୍କୁ ଅନ୍ୟ ପାଞ୍ଚଜଣଙ୍କ
ସହ ପରବର୍ତ୍ତୀ ପର୍ଯ୍ୟାୟକୁ ପହଞ୍ଚାଇ ଦେଇଥିଲା । ଏହାପରେ ସେମାନଙ୍କ ସାଧାରଣ ଜ୍ଞାନ,
ସୌନ୍ଦର୍ଯ୍ୟ ଓ ବ୍ୟାବହାରିକ ଜ୍ଞାନ ଉପରେ ପରୀକ୍ଷା ହୋଇଥିଲା । ସେଥିରେ ଆଉ ତିନିଜଣଙ୍କୁ ବିଦାୟ
ନେବାକୁ ପଡ଼ିଥିଲା । ଅତଏବ ପରବର୍ତ୍ତୀ ରାଉଣ୍ଡକୁ ଉନ୍ନୀତ ହୋଇଥିଲେ ମାତ୍ର ତିନିଜଣ । କହିବା
ବାହୁଲ୍ୟ, ସେହି ତିନିଜଣ ଭାଗ୍ୟଶାଳୀ ପ୍ରତିଯୋଗୀଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଗରିମା ମଧ୍ୟ ସ୍ଥାନ ପାଇଥିଲେ ।
ତୃତୀୟ ଅର୍ଥାତ୍ ପର୍ସନାଲିଟି
ରାଉଣ୍ଡ୍ ଥିଲା ପ୍ରତିଯୋଗୀମାନଙ୍କ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ୱର ପରିମାପକ । ଏଥିରେ ସେମାନଙ୍କ ଚିନ୍ତାଧାରା,
ଦେଶ ଓ ଦୁନିଆଁ ସମ୍ପର୍କରେ ସେମାନଙ୍କ ଆଭିମୁଖ୍ୟ ଇତ୍ୟାଦିକୁ ନେଇ ପ୍ରଶ୍ନସବୁ ଆସୁଥିଲା ।
ଏଥିରେ ଗରିମାଙ୍କୁ ବିଚାରକ ମଣ୍ଡଳୀର ପ୍ରଶ୍ନ ଥିଲା, “ମହିଳାଙ୍କ ପାଖରେ କ’ଣ ସ୍ଵତନ୍ତ୍ର କ୍ଷମତା ଅଛି,
ଯାହା ପୁରୁଷଙ୍କ
ପାଖରେ ନାହିଁ ?” ଉତ୍ତରରେ ସେ କହିଥିଲେ, “ସନ୍ତାନକୁ ଜନ୍ମ ଦେବାର କ୍ଷମତା। ଏକ ଶିଶୁକୁ ଜନ୍ମ ଦେବା ହୃଦଘାତ
ଯନ୍ତ୍ରଣା ସହ ସମାନ, କିନ୍ତୁ ମହିଳାମାନେ ନିଜ ସନ୍ତାନ ପାଇଁ ତାହା ହସିହସି ସହିଥା’ନ୍ତି।” ଏହାପରେ ଆଉଏକ ପ୍ରଶ୍ନ ପଚରା ଯାଇଥିଲା, “ଜଣେ ପୁରୁଷକୁ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ହେବାକୁ ହେଲେ ମୁଖ୍ୟତଃ କେଉଁ ତିନିଟି ବିଷୟ ଥିବା ଆବଶ୍ୟକ ?” ଉତ୍ତରରେ ଗରିମା କହିଥିଲେ, “ସ୍ଥିତପ୍ରଜ୍ଞତା, ଧୈର୍ଯ୍ୟ ଓ ଶୃଙ୍ଖଳା
।” ଖାଲି କହି ନ ଥିଲେ, ଏହାକୁ ବ୍ୟାଖ୍ୟା କରି
ବିଚାରକମାନଙ୍କୁ ମନ୍ତ୍ରମୁଗ୍ଧ କରି ଦେଇଥିଲେ । ସେତିକି ବେଳୁ ହିଁ ଗରିମାଙ୍କୁ ଲାଗୁଥିଲା ସେ
ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ବିଜୟଲାଭ କରିବାକୁ ଯାଉଛନ୍ତି ବୋଲି । ମାତ୍ର ମନରେ ଥିଲା ସମ୍ୟକ୍ ଦ୍ୱନ୍ଦ୍ୱ ।
ଶେଷରେ ମଞ୍ଚରେ ଯେତେବେଳେ ତିନି ପ୍ରତିଯୋଗୀଙ୍କ ଉପସ୍ଥିତିରେ ବିଜୟୀ
ପ୍ରତିଯୋଗୀଙ୍କ ନାଁ ଡକାହେଲା, ତାହା ଥିଲା ଗରିମା ରସାଲିଙ୍କର । ସେତେବେଳେ ଗରିମା ନିଜେ
ଏନସିସି ପୋଷାକରେ ଥିଲେ । ସେହି ପୋଷାକରେ ହିଁ ସେ ଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ ‘ମିସ୍ ଏସଏନଏ’ ବିଜୟୀ ମୁକୁଟ । ଦର୍ଶକଙ୍କ କରତାଳିରେ ଫାଟି ପଡ଼ିଥିଲା ସଭାଗୃହ ।
ତେବେ ପୁରସ୍କାର ଗ୍ରହଣ କରୁଥିବା ବେଳେ ଗରିମାଙ୍କ ମନରେ ଖୁସି ଓ ଆନନ୍ଦ ତ ରହିଥିଲା, ତା’ ସାଙ୍ଗକୁ ଥିଲା ଆଗକୁ ଆସୁଥିବା
ଆହ୍ୱାନକୁ କିଭଳି ସମ୍ମୁଖୀନ ହେବେ, ତାକୁ ନେଇ ଚିନ୍ତା । ଏଠାରେ ଉଲ୍ଲେଖ କରିବା ଉଚିତ୍ ହେବ
ଯେ, ଆସନ୍ତା ନଭେମ୍ବର ମାସରେ ମହାରାଷ୍ଟ୍ରର ପୁଣେଠାରେ ହେବାକୁ ଯାଉଛି ସର୍ବଭାରତୀୟ ସ୍ତରର
ପ୍ରତିଯୋଗିତା ‘ମିସ୍ ଟିଏନଏଆଇ।’ ବିଭିନ୍ନ ରାଜ୍ୟସ୍ତରରେ ବିଜୟୀ ପ୍ରତିଯୋଗୀମାନେ ଏଥିରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବେ । ଆଉ ଓଡ଼ିଶାକୁ
ପ୍ରତିନିଧିତ୍ୱ କରିବେ ଶ୍ରୀ ଶ୍ରୀ ନର୍ସିଂ ମହାବିଦ୍ୟାଳୟର ଛାତ୍ରୀ ଗରିମା ରସେଲି । ଉକ୍ତ
ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ମଧ୍ୟ ବିଜୟୀ ହେବାର ସ୍ୱପ୍ନ ଦେଖୁଥିବା ଗରିମା ସେଥିପାଇଁ ବର୍ତ୍ତମାନର ବିଜୟ
ଉତ୍ସବକୁ ପାଳନ ନ କରି କଠିନ ପରିଶ୍ରମ କରିବାରେ ଲାଗି ପଡ଼ିଛନ୍ତି । ଦେଖାଯାଉ, ତାଙ୍କର ସେ ସ୍ୱପ୍ନ
ବାସ୍ତବତାର ରୂପ ନେଇ ପାରୁଛି କି ନାହିଁ !










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