श्रद्धा से भविष्य निर्माण तक: SSRVM प्रिंसिपल्स मीट का अविस्मरणीय आयोजन
(प्रिंसिपल्स मीट के मंच पर कमोडोर एच. जी. हर्षा जी और श्री श्री विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) तेज प्रताप)
(अतिथीयों का भव्य और दिव्य स्वागत किया जा रहा है)
कार्यक्रम की शुरुआत मौन और साधना से कुछ ऐसी हुई जो केवल आर्ट ऑफ़ लिविंग परिवार ही गहराई से समझ सकता है। उगते सूर्य की शांति में, सभी प्रिंसिपल्स सामूहिक सुबह की साधना के लिए एकत्र हुए। मन की स्थिरता ने इन दो दिनों की दिशा को सहज रूप से निर्धारित कर दिया। इसके बाद औपचारिक उद्घाटन गुरु पूजा के साथ आरंभ हुआ, जिसे SSRVM ट्रस्ट के चेयरमैन, कमोडोर एच. जी. हर्षा ने सम्पन्न किया।
मंत्रों की गूंज ने यह स्मरण कराया कि SSRVM की हर यात्रा, हर निर्णय और हर कदम गुरुदेव की कृपा से ही संचालित होता है। फिर श्री श्री विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. तेज प्रताप तथा वर्चुअली जुड़ी हुइ विश्वविद्यालय की कुलाध्यक्षा एवं SSRVM ट्रस्टी, प्रो. रजिता कुलकर्णी ने हार्दिक स्वागत किया। उनकी वाणी ने सभी के मन में कृतज्ञता, उद्देश्य और एकता की भावना और गहराई से स्थापित कर दी।
पहला दिन ज्ञान, अनुभव और प्रेरणा से भरपूर रहा। कमोडोर हर्षा द्वारा दिया गया उद्घाटन संबोधन केवल प्रशासनिक मार्गदर्शन ही नहीं, बल्कि शिक्षा और नेतृत्व के सार को छू लेने वाली प्रेरणा था। इस वर्ष की थीम श्रद्धा- गुरुदेव द्वारा रचित शैक्षिक दर्शन का केंद्र बिंदु रही, और इसे पूरे सम्मेलन में विशेष महत्व मिला। श्रद्धा कैसी हो ? कैसी शिक्षा में प्रकट होती है ? यह केवल विश्वास नहीं, बल्कि उत्कृष्टता के लिए समर्पण बन जाती है इस पर हर्षा जी के विचारों ने सभी को भीतर तक छू लिया।
इसके बाद एसएसआरवीएम बेंगलुरु नॉर्थ की प्रिंसिपल, श्रीमती ममता रविप्रकाश का सत्र हुआ “शिक्षा में श्रद्धा”। उनकी सरल, स्पष्ट वाणी ने इस सत्य को बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया कि शिक्षा संस्थान केवल पाठ्यक्रम और व्यवस्था से नहीं चलाए जाते, वे उन शिक्षकों और नेताओं की श्रद्धा से सांस लेते हैं, जो उन्हें दिशा देते हैं। उनका सत्र अत्यंत प्रभावशाली रहा।
इसके बाद SSRVM ट्रस्ट की ट्रस्टी, श्रीमती जैनाबेन देसाई ने “इक्कीसवीं सदी का शैक्षिक नेतृत्व और गुरुदेव की प्रज्ञा” पर विस्तृत सत्र लिया। उन्होंने आधुनिक शिक्षा के दबावों और चुनौतियों को गुरुदेव के कालातीत समाधानों से जोड़कर यह दर्शाया कि कैसे आध्यात्मिकता और आधुनिकता मिलकर एक सशक्त भविष्य का निर्माण कर सकती हैं। उनकी उपस्थिति और सरलता ने सभी को प्रभावित किया।
(उपस्थित सुधीवृंद वक्ताओं को ध्यानपूर्वक सुनते हुए)
दिन के विशेषतम क्षणों में से एक था श्री नरसिंहन नारायणन (अन्ना जी) का स्नेहपूर्ण संबोधन। वे गुरुदेव के जीजा तथा श्रीमति भानुमति नरसिंहन जी के पति हैं। उनकी विनम्रता और गहरी आध्यात्मिकता से भरी वाणी ने सभी को भाव-विभोर कर दिया। इसके बाद देशभर के प्रिंसिपल्स ने अपने-अपने विद्यालयों की श्रेष्ठ कार्यप्रणालियों और नवाचारों को साझा किया, यह केवल अनुभवों का आदान प्रदान नहीं था, बल्कि पच्चीस वर्षों में SSRVM ने जो यात्रा तय की है, उसका जीवंत चित्रण था।
पहले दिन का समापन पुरी श्रीजगन्नाथ मंदिर की विशेष यात्रा कि दिव्य और अद्वितीय अनुभव के साथ हुआ। । कई प्रिंसिपल पहली बार भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए आए थे, और उनकी अनुभूति शब्दों से परे थी।
श्री श्री विश्वविद्यालय के छात्र स्वयंसेवकों ने जिस स्नेह और सम्मान से उनकी सेवा की, उसने सभी के हृदय को छू लिया। बाद में कई प्रिंसिपल्स ने कहा कि वे विश्वविद्यालय के छात्रों की विनम्रता और अनुशासन से अत्यंत प्रभावित हुए हैं।
दूसरा दिन एक अनुपम उपहार के साथ आरंभ हुआ, और वह था पूज्य गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी का ऑनलाइन सत्र। जैसे ही उनका मुखकमल स्क्रीन पर प्रकट हुआ, पूरा सभागार शांत हो गया। गुरुदेव ने मूल्य-आधारित शिक्षा, चेतना के विकास और शिक्षकों की निर्णायक भूमिका पर गहन मार्गदर्शन दिया। अनेक प्रिंसिपल्स ने कहा कि केवल इस सत्र के लिए ही आना सार्थक हो गया।
इसके बाद प्रो. रजिता कुलकर्णी, कमोडोर हर्षा और श्रीमती जैनाबेन देसाई ने SSRVM के विज़न को विस्तृत रूप से रखा। श्री नितिन अरोड़ा का कृत्रिम बुद्धिमत्ता युग की शिक्षा पर सत्र और सुश्री कृतिक बालाजी का “नीति और प्रज्ञा-आधारित शिक्षा” पर सत्र अत्यंत ज्ञानवर्धक और व्यावहारिक रहा।
दोपहर बाद प्रिंसिपल्स ने श्री श्री विश्वविद्यालय के “Happiest Campus of the World” का विस्तृत भ्रमण किया। नवोन्मेष प्रदर्शनी, सृजनात्मक प्रयोगशालाएँ, ध्यान स्थल, पुस्तकालय, शिक्षण भवन और प्रकृति से जुड़ा शांत वातावरण। कई प्रिंसिपल्स ने स्वीकार किया कि उन्होंने पहली बार गुरुदेव के “KG to PhD” के सपने को इतने सजीव रूप में साकार होते देखा। वे भावुक होकर कहने लगे कि उनके अपने छात्र भी यहाँ अवश्य अध्ययन करें।
सबसे अधिक छाप छोड़ने वाली बात केवल विशाल व्यवस्था या सुंदर परिसर नहीं था, बल्कि वह मानवीय गर्माहट थी जो प्रत्येक प्रिंसिपल ने विश्वविद्यालय के सदस्यों से महसूस की। उन्होंने अपने लिखित और मौखिक संदेशों में बार-बार कहा कि यह केवल आयोजन नहीं था, यह हृदय से किया गया स्वागत था।
अंत में, जब दूसरा दिन ढल रहा था और प्रिंसिपल्स अपने-अपने राज्यों की ओर लौटने की तैयारी कर रहे थे, तो एक बात स्पष्ट थी, यह बैठक केवल एक वार्षिक आयोजन नहीं थी। यह भविष्य के लिए एक नए संकल्प की शुरुआत थी, एक ऐसा संकल्प जो श्रद्धा, करुणा, सहयोग और गुरुदेव की दूरदर्शी शिक्षा पर आधारित है। श्री श्री विश्वविद्यालय ने इस सम्मेलन की मेज़बानी मात्र नहीं की, बल्कि उसकी आत्मा बन गया, एक ऐसा केंद्र जहां से SSRVM परिवार का अगला अध्याय और भी उज्ज्वल होकर उभरेगा।





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