श्री श्री विश्वविद्यालय में गुरुदेव के पंचदिवसीय सान्निध्य का दिव्य अध्याय
नराज़ में गुरुदेव का आगमन:
श्री श्री विश्वविद्यालय में नवपल्लवित उल्लास
६ से १० नवम्बर २०२५। कटक के नराजस्थित श्री श्री विश्वविद्यालय के लिए यह एक अविस्मरणीय समय था। यह वह अवसर था जब विश्वविद्यालय को अपने प्राण-प्रतिष्ठाता, आजीवन अध्यक्ष तथा सुप्रसिद्ध मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर जी के सान्निध्य का दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त हुआ।
पाँचों दिनों तक पूरा विश्वविद्यालय मानो नववधू की तरह सजा-धजा, उल्लास से भरा हुआ था। हर विद्यार्थी से लेकर सभी अध्यापक-अध्यापिकाएँ, चौथी श्रेणी के कर्मचारी से लेकर सर्वोच्च पदाधिकारियों तक सभी गुरुजी के आगमन को लेकर उत्सुक, उत्साहित और उत्कण्ठित थे।
६ तारीख, गुरुवार की उस
शुभ संध्या… श्रीगुरुदेव की बहन, पूज्या भानुमति नरसिंहन पहले यहाँ
पधारीं। उनके आगमन के साथ ही मानो वातावरण में एक पवित्र उल्लास फैल गया। वे साथ
लाई थीं अपने पूज्य भाई की आनंदमयी और शुभ समाचारों से भरी
सौगात। विश्वविद्यालय के द्वार पर पहुँचते ही पूरा लीडरशिप दल स्वयं आगे
बढ़कर उनके स्वागत में खड़ा हो गया। सम्मान, आदर और उत्साह
से भरा वह क्षण सभी के लिए अविस्मरणीय बन गया। और जब वे श्री श्री विश्वविद्यालय
के विशाल परिसर में प्रवेश करती हैं, तो वातावरण और भी दिव्य हो उठता है, उनका
स्वागत होता है भव्यता, गरिमा और आनंद के साथ, मानो पूरा परिसर स्वयं मुस्कुराकर उनका
अभिनंदन कर रहा हो।
६ तारीख, गुरुवार, झारसुगुड़ा सत्संग कार्यक्रम समाप्त कर जब गुरुजी श्री श्री विश्वविद्यालय पहुँचे, तब उनका आगमन होते ही पूरा परिसर जैसे पुलकित हो उठा। ऐसा लगा मानो परिसर के वृक्षों पर नये पल्लव फूट पड़े हों, जैसे नवप्रभात की किरणों से रात का अँधकार स्वयं प्रकाशमान हो उठा हो।
गुरुजी भुवनेश्वर हवाई अड्डे से सीधे विश्वविद्यालय पहुँचे। मुख्य द्वार पर उनका
भव्य स्वागत-सत्कार किया गया और गरिमापूर्ण सम्मान के साथ उन्हें परिसर के भीतर ले
जाया गया। देर शाम होने के बावजूद, हज़ारों विद्यार्थी और कई
अधिकारी मुख्य सड़क के दोनों ओर केवल उनके दर्शन के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे।
गुरुजी आए, सबको दर्शन दिए और प्रेमपूर्वक आशीर्वाद भी
प्रदान किया।
वास्तव में केवल इतना नहीं है कि गुरुजी श्री श्री
रविशंकर जी ओडिशा और विश्वविद्यालय आए, इसलिए उसका महत्व बढ़ गया। श्री श्री
विश्वविद्यालय का महत्व तो पहले से ही है, क्योंकि यह
विश्वविद्यालय स्वयं गुरुजी की मानस संतान है। यहाँ एक विद्यार्थी केवल बाहरी
शिक्षा ही नहीं पाता, बल्कि अपने भीतर-मन
और आत्मा को भी पोषण देने वाली शिक्षा प्राप्त करता है। इसी कारण यहाँ उत्तम ज्ञान
के साथ-साथ उत्तम चरित्र निर्माण का भी सुवर्ण अवसर मिलता है। यहाँ से स्नातक होने
के बाद कोई भी अपने जीवन में गर्व से यह कह सकता है कि “मैं
कभी श्री श्री विश्वविद्यालय का विद्यार्थी था।”
नवम्बर ७ से ९ :
एशिया के प्रथम अन्तरराष्ट्रीय ऑस्टियोपैथी सम्मेलन में श्री श्री विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक क्षण
गुरुदेव के विश्वविद्यालय आने के अगले दिन का अत्यंत महत्व था, क्योंकि उसी दिन श्री श्री विश्वविद्यालय में पहली बार तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय ऑस्टियोपैथी कन्वेंशन का आयोजन हो रहा था। पूरे एशिया महाद्वीप में यह ऐसा आयोजन पहली बार हो रहा था।
७ से ९ नवम्बर २०२५ तक विश्वविद्यालय ने अनेक विदेशी वक्ताओं और विद्वान अतिथियों के सारगर्भित भाषणों की मेजबानी की। कन्वेंशन के उद्घाटन दिवस पर उपस्थित होकर गुरुदेव ने बहुत सुंदर बातें कही। उन्होंने कहा: “एक समय था जब लोगों को ऑस्टियोपैथी या अस्थि-चिकित्सा विज्ञान क्या होता है, इसका ज्ञान ही नहीं था। यहाँ तक कि डॉक्टर भी इसे लेकर दुविधा में रहते थे- यह ऑस्टियोपोरोसिस है या ऑर्थोपेडिक ? इसके अलावा, इस विषय को पढ़ने पर नौकरी मिलेगी या नहीं, इसको लेकर विद्यार्थी और अभिभावक दोनों ही असमंजस में थे। लेकिन समय बदल गया है। आज ऑस्टियोपैथी ने पूरे विश्व में अपनी लोकप्रियता बढ़ाई है। मानव समाज के समग्र स्वास्थ्य-रक्षण में इसका योगदान अद्वितीय है।”
विदेशी विद्वानों व अतिथियों के गहन वक्तव्यों में ऑस्टियोपैथी शिक्षा के नवीन क्षितिज
यह सम्मेलन दुनिया के लगभग हर कोने से ऑस्टियोपैथ और स्वास्थ्य-क्षेत्र से जुड़े प्रमुख विशेषज्ञों को एक मंच पर लाने के साथ-साथ, ऑस्टियोपैथी शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में एक नया अध्याय स्थापित करने में सक्षम हुआ। गुरुदेव की बहन भानु नरसिंहन भी इस कन्वेंशन में शामिल हुईं। उनकी उपस्थिति ने सभी के भीतर नया उत्साह भर दिया। श्री श्री विश्वविद्यालय से ऑस्टियोपैथी में सफलतापूर्वक उत्तीर्ण हुए १०० पूर्व छात्र भी इस आयोजन में सम्मिलित हुए। इस सम्मेलन में इंग्लैंड, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, कनाडा, इटली, स्पेन और लिथुआनिया से कई विशिष्ट एवं प्रसिद्ध अतिथि वक्ता उपस्थित थे। तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में उन्होंने ऑस्टियोपैथी के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा और विचार-विमर्श किया।
अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान श्री श्री विश्वविद्यालय की कुलाध्यक्षा प्रो. रजिता कुलकर्णी, कुलपति प्रो. (डॉ.) तेजप्रताप तथा आयोजन समिति के अध्यक्ष एवं स्वास्थ्य और कल्याण विभाग के डीन प्रो. (डॉ.) तीर्थंकर घोष द्वारा किया गया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कार्मिक निर्देशक स्वामी सत्यचैतन्य तथा कार्यनिर्वाही कुलसचिव प्रो. (डॉ.) अनिल कुमार शर्मा भी उपस्थित रहे। विदेशों से आए विशिष्ट विशेषज्ञ अतिथि वक्ताओं में, प्रोफेसर रेंजो मोलिनारी (इंग्लैंड) ने महिलाओं की स्वास्थ्य संरचना और कार्यप्रणाली पर, तेजिंदर देओरा (इंग्लैंड) ने प्रतिरक्षा तंत्र के संदर्भ में ऑस्टियोपैथी के दृष्टिकोण पर, क्रिस्टीन डिफ्रांस (फ्रांस) ने शरीर के परिवर्तनशील अवस्थाओं पर, तथा लॉरेंस फोर्डग्नियर (यूके–फ्रांस) ने दुर्लभ स्थितियों में ऑस्टियोपैथी के दृष्टिकोण पर व्याख्यान दिया।
(ऑस्टियोपैथी कन्वेंशन में संबर्द्धित विदेशागत प्रतिभाएँ)
एम्ब्रिन फूर (इंग्लैंड) ने मुख-गह्वर (ओरल कैविटी) स्वास्थ्य पर तथा सिबिले ग्राफ (स्विट्ज़रलैंड) ने बच्चों में एन्यूरिसिस और मूत्राशय संबंधी समस्याओं पर अपने विचार रखे। इसी प्रकार, ह्यूगेट लैम्बर्ट (कनाडा) ने थायरॉइड संबंधी कारणों पर, अलेस्सान्द्रा अबेनाबोली (इटली) ने “ऑस्टियोपैथी एज एवं परसेप्चुअल प्रैक्टिस” पर, तथा डॉ. ओल्गा एस्टाडेला (स्पेन) ने ऑर्गन मोबिलिटी और लीवर–गट संबंध पर चर्चा की। इसके अतिरिक्त, पेड्रो लासन (यूरोप) ने श्वास-रोगों में परिसंचरण रणनीतियों पर, ह्यूगो चिएरा (यूरोप) ने समग्र स्वास्थ्य-परिचर्या और उसके मूल सिद्धांतों पर, तथा डॉ. केस्टुटिस अडामोनिस (यूके) ने ऑस्टियोपैथिक इंटीग्रेशन के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं पर विस्तृत विचार-विमर्श किया।
नवोन्मेष प्रदर्शनी:
युवा प्रतिभाओं की नई सोच से सजे अभिनव आविष्कार
खाली इतना ही नहीं, उस दिन गुरुदेव ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा निर्मित अनेक नए-नए नवाचारों से समृद्ध एक प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया, जिसका नाम था “नवोन्मेष – आइडियाज़ टू इनोवेशन”, अर्थात् कुछ नया करने की दिशा में आरम्भ।
वास्तव में इस प्रदर्शनी ने अपने नाम को सार्थक किया। अनेक युवा प्रतिभाओं ने अपने उत्साह, रुचि और रचनात्मक ऊर्जा के माध्यम से कई अभिनव चीज़ें प्रस्तुत कीं। इसमें आयुर्वेद से जुड़े अनेक प्रोजेक्ट भी प्रदर्शित किए गए, जिन्होंने विद्यार्थियों, शोधार्थियों और दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया।
स्वास्थ्य और वेल-बीइंग विभाग भी पीछे नहीं रहा, उन्होंने अपने प्रतिभावान विद्यार्थियों के साथ कई उपयोगी और आधुनिक प्रोजेक्ट प्रदर्शित किए। नर्सिंग विभाग ने भी अपने विद्यार्थियों के उत्कृष्ट प्रोजेक्ट प्रस्तुत किए। इन सभी प्रोजेक्टों को कुलाध्यक्षा प्रोफ़ेसर रजिता कुलकर्णी, कुलपति प्रोफ़ेसर (डॉ.) तेजप्रताप, कार्यनिर्वाही कुलसचिव प्रोफ़ेसर (डॉ.) अनिल कुमार शर्मा और कार्मिक निर्देशक स्वामी सत्यचैतन्य ने गुरुदेव को घुमाकर दिखाया। गुरुदेव ने विभिन्न प्रोजेक्ट देखकर अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त की। वे कई प्रोजेक्टों के बारे में विद्यार्थियों से बात करते हुए उनके निर्माण और विशेषताओं को जानने में रुचि दिखा रहे थे।
उनकी यह सरल, उत्सुक और प्रोत्साहन-भरी शैली बच्चों के मन में अपार उत्साह भर रही थी। कृषि विभाग के विद्यार्थियों ने भी कड़ी मेहनत से अनेक आकर्षक प्रोजेक्ट प्रस्तुत किए। इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी विभाग के प्रोजेक्टों को दर्शकों ने खूब सराहा। कला, संचार और भारतीय शिक्षा विभाग ने भी सुंदर कलाकृतियाँ प्रदर्शित कीं।
शिल्पग्राम में भी कई प्रोजेक्ट प्रदर्शित हुए, जिन्होंने विद्यार्थियों और बाहरी दर्शकों का मन मोह लिया। प्रदर्शनी मंच पर ललित कला विद्यालय ने स्वतंत्र रूप से विविध कलात्मक कृतियों का प्रदर्शन किया। गुरुदेव ने रिबन काटकर इस प्रदर्शनी का औपचारिक उद्घाटन किया, जिसे उनकी प्रशंसा प्राप्त हुई।
मनोविज्ञान विभाग के प्रोजेक्टों ने भी दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया। वास्तुकला विभाग द्वारा प्रस्तुत प्रोजेक्ट भी अत्यंत सराहे गए। श्री श्री विश्वविद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों से संबंधित विस्तृत जानकारी भी नवोन्मेष प्रदर्शनी में प्रस्तुत की गई थी।
संकल्प:
क्षेत्रीय शिक्षण संस्थानों के साथ संवाद का एक सारगर्भित मंच
उसी दिन “संकल्प”
के नाम से एक और महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित हुआ, जिसमें
क्षेत्र के विभिन्न शिक्षण संस्थानों के अध्यक्षों ने भाग लेकर चर्चाओं में सक्रिय
रूप से हिस्सा लिया।
आध्यात्मिकता एवं सुशासन:
लोकसेवा भवन में गुरुदेव की दृष्टि से उभरती हुई ओड़िशा की प्रगतिशील
दिशा
इसके बाद दोपहर में गुरुदेव ने भुवनेश्वर स्थित लोकसेवा भवन में “स्पिरिचुअलिटी इन विकसित ओडिशा – एथिक्स इन गवर्नेंस” (विकसित ओडिशा में आध्यात्मिकता – शासन में नैतिकता) विषय पर राज्य के वरिष्ठ प्रशासकों को संबोधित किया। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा, “किसी एक उत्तम प्रशासक के लिए मन की अंतर्निहित स्थिरता, संतुलन, मूल्यों पर आधारित स्पष्टता, निर्णय लेने में विनम्रता तथा सजगता को प्राथमिकता देना अत्यंत आवश्यक है। ये केवल दार्शनिक बातें नहीं हैं, बल्कि जटिल और तेज़ी से बदलते भारत में उच्च स्तर के शासन और सेवाओं के प्रभावी वितरण के लिए आवश्यक शक्तियाँ हैं।”
उन्होंने आगे यह
भी उल्लेख किया कि जब मानव-केंद्रित प्रशासन नैतिकता और आंतरिक संतुलन पर आधारित
होता है, तब नीति-आधारित हस्तक्षेपों के माध्यम से समस्याओं
के समाधान के साथ-साथ शासन व्यवस्था में विश्वास, समन्वय और
भरोसा भी स्थापित होता है।
एमओयू हस्ताक्षर:
श्री श्री विश्वविद्यालय और ओड़िशा सरकार के संयुक्त प्रयास से
शिक्षा–स्वास्थ्य के नए मील के पत्थर
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के लोकसेवा भवन संबोधन के अवसर पर श्री श्री
विश्वविद्यालय और ओड़िशा सरकार के विभिन्न विभागों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौता
ज्ञापन (एमओयु) भी हस्ताक्षरित हुए। विशेष रूप से ओडिशा स्टेट डिज़ास्टर
मैनेजमेंट अथॉरिटी (ओसडमा) तथा सोशल सिक्योरिटी एंड
एम्पावरमेंट ऑफ पर्सन्स विद डिसएबिलिटीज़ (एसएसइपिडी) विभाग
के साथ हुए इन एमओयु के माध्यम से शिक्षा, प्रशिक्षण,
कौशल-विकास तथा युवाओं में नशा-मुक्त ओड़िशा अभियान के
व्यापक प्रचार-प्रसार और जागरूकता के क्षेत्र में परस्पर सहयोग किया जाएगा।
महासत्संग में मंत्रमुग्ध हुआ जनसमुद्र:
गुरुदेव की दिव्य उपस्थिति से आलोकित शान्ति की अद्वितीय संध्या
उस दिन शाम को श्री श्री विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित महा सत्संग में गुरुदेव को सुनने का सौभाग्य श्री श्री विश्वविद्यालय परिवार को मिला। उपस्थित हजारों श्रोतागण गुरुदेव के वचनों से मंत्रमुग्ध हो उठे। राज्य तथा देश के कोने–कोने से आए अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के सान्निध्य का लाभ उठाया। लगभग एक घंटे तक पूर्ण शांति और अनुशासन के साथ मंत्रमुग्ध जनता ने गुरुदेव के उपदेश और प्रवचन को सुना। यह कार्यक्रम देर शाम तक चलता रहा। द्वैत नगरी के कई उच्च अधिकारी, राजनेता, वकील, स्वयंसेवी, पत्रकार, चिकित्सक और साहित्यकार सहित विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े सैकड़ों लोगों ने महा सत्संग में गुरुदेव के वचनों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त किया।
द्वादश दीक्षांत समारोह:
गुरुदेव की उपस्थिति में गौरवशाली परंपरा का
उज्ज्वल उत्सव
इसके उपरान्त वह अलभ्य, वह अनुपम क्षण आ पहुँचा। ८ नवम्बर को श्री श्री विश्वविद्यालय ने अपना द्वादश दीक्षांत समारोह बड़े ही गौरव और गरिमा के साथ सम्पन्न किया। इस पावन अवसर पर गुरुदेव सम्पूर्ण समारोह के प्राण, उसके आलोक-स्तंभ बनकर विराजमान थे।
उपस्थित विद्यार्थियों, उनके
अभिभावकों, गुरुजनों, विश्वविद्यालय
परिवार तथा मीडिया-जगत के प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने अल्प किन्तु
अमूल्य और अत्यन्त मार्मिक वचनों का वर्षावन कर दिया। विश्वविद्यालय से सफलता के
साथ विदा ले रहे विद्यार्थियों को उन्होंने वात्सल्य से ओतप्रोत होकर कहा,
“अपने मुखमण्डल पर इस मधुर मुस्कान को सदैव बनाए रखना। जीवन तो
चुनौती-तरंगों का अथाह सागर है, एक के बाद एक लहरें अवश्य
आएँगी; परन्तु तुम्हारे होठों की यह मुस्कान कभी न डिगे,
कभी न टूटे। शिक्षा का वास्तविक पथ तो अब आरम्भ हो रहा है; आगे का मार्ग तुम्हें और विस्तार से साधना है, और भी
अधिक सीखने का अवकाश अभी शेष है। इस यात्रा में विचलित होना, निराश होना उचित नहीं। ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ ने तुम सबके लिए विश्व के १८० देशों में विशाल मंच
सजा दिए हैं। अब तुम्हीं आगे बढ़ो, और उस विराट मंच पर अपना जीवन-नृत्य
साकार करो।”
चलित वर्ष में ७०० विद्यार्थियों को स्नातक एवं स्नातकोत्तर उपाधियाँ प्रदान की गईं। उनमें से ३० विद्यार्थियों को उपाध्युत्तर (पी.एच.डी.) की डिग्री समर्पित की गई, जबकि ३० छात्रों को स्वर्ण, २८ को रजत तथा १८ को कांस्य पदक अर्पित कर सम्मानित किया गया। इन सभी को विश्वविद्यालय के कार्यनिर्याही कुलसचिव प्रोफ़ेसर डॉ॰ अनिल कुमार शर्मा ने शपथ दिलाई। दीक्षान्त समारोह में नैक तथा एन.बी.ए. के प्रमुख डॉ॰ अनिल सहस्रबुद्धे ने विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित होकर विद्यार्थियों को संबोधित किया और कहा कि राष्ट्र २०४७ तक विकसित भारत का स्वरूप अवश्य देखेगा।
अन्य सम्मानित अतिथियों में नेपाल के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री कल्याण श्रेष्ठ भी उपस्थित रहे। उन्होंने श्री श्री विश्वविद्यालय के ध्येय-वाक्य ‘लर्न–लीड–सर्व’ का उल्लेख करते हुए सफल स्नातकों को साधुवाद दिया। मुख्य अतिथि के रूप में पधारे भारत सरकार के शिक्षा राज्यमंत्री डॉ॰ सुकान्त मजूमदार ने कहा कि श्री श्री विश्वविद्यालय में प्राच्य की प्राचीन शिक्षा-पद्धति और पाश्चात्य की नवीन संस्कृति का अद्भुत संगम दृष्टिगोचर होता है।
कुलाध्यक्षा प्रोफ़ेसर रजिता कुलकर्णी ने अपने वक्तव्य में बताया
कि किस प्रकार गुरुदेव श्री श्री रविशंकर की दूरदृष्टि को विश्वविद्यालय में मूर्त
रूप दिया जा रहा है। कार्यक्रम के आरम्भ में कुलपति प्रोफ़ेसर (डॉ॰) तेजप्रताप ने
वार्षिक प्रतिवेदन का वाचन किया। अपने वक्तव्य में उन्होंने यह भी रेखांकित किया
कि भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र से सम्बद्ध ७७ समितियों, परिषदों
और टास्क फ़ोर्सों में श्री श्री विश्वविद्यालय के प्राध्यापक या तो अध्यक्ष पद पर
आसीन हैं अथवा महत्त्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। इस अवसर पर
विश्वविद्यालय की ओर से भारत के पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री सुरेश प्रभु को मानद
डॉक्टरेट उपाधि प्रदान की गई। कार्यक्रम के समापन पर कार्यनिर्याही कुलसचिव डॉ॰
अनिल कुमार शर्मा ने उपस्थित जनों के प्रति आभार व्यक्त किया।
कैंपस के हर कोने में उत्सव की तरंग:
प्रथम दिवस से अंतिम क्षण तक उमंग से
भरपूर विश्वविद्यालय
नवम्बर ९ का दिन भी श्री श्री विश्वविद्यालय में अद्भुत चंचलता और पावन स्पंदनों से भरा हुआ था। वातावरण में एक विशेष प्रकार की उत्सुकता थी, क्योंकि उस दिवस गुरुदेव ने विश्वविद्यालय के समस्त अध्यापकों, कर्मचारियों तथा संबद्ध जनों को प्रत्यक्ष सान्निध्य का दुर्लभ अवसर प्रदान किया था।
उनके दर्शनों से सबके हृदय अनिर्वचनीय आनन्द से आप्लावित हो उठे; मानो किसी दीर्घ अभिलाषा की पूर्ति हुई हो। विश्वविद्यालय चूँकि गुरुदेव की मनीषा की ही पावन संतान है, अतः उसके सुचारु, सुसंस्कृत एवं आदर्श संचालन के लिए उन्होंने सहज, किन्तु अत्यन्त प्रभावकारी दिशानिर्देश दिए।
विद्यार्थियों के शैक्षणिक जीवन को अधिक गुणवत्तापूर्ण, अधिक उज्ज्वल और अधिक मानवीय बनाने हेतु भी उन्होंने ‘गुरुमंत्र’ प्रदान किया—एक ऐसी प्रेरणा, जो मनुष्य-निर्माण की दीर्घ परम्परा को और सुदृढ़ करती है। गुरुदेव ने स्वयं विद्यार्थियों से मिलकर उनकी भावनाओं, आकांक्षाओं और प्रश्नों को सुना। समय का कोई भी बन्धन उन्होंने अपने समीप आने वालों पर नहीं रखा।
सभी को समान स्नेह और पूर्ण ध्यान से उन्होंने
सुना—मानो एक ज्योति, जो अपने प्रकाश से किसी को भी अछूता
नहीं रहने देती। किसी का मन न खिन्न हो, किसी की आशा न
टूटे—इसका सुकोमल ध्यान वे निरन्तर रखते रहे।
गुरुदेव की विदाई:
१० नवम्बर की शांत प्रभात में नई प्रेरणा के साथ पूर्ण
हुआ दिव्य प्रवास
और फिर नवम्बर १० की वह शांत प्रभात आ पहुँची। उसी पावन सुबह में गुरुदेव श्री श्री विश्वविद्यालय तथा ओड़िशा की पावन धरती से आगे की यात्रा पर निकल पड़े। उनका यह अल्पकालिक प्रवास यद्यपि अत्यधिक कार्यभार और व्यस्तता से भरा रहा, फिर भी प्रत्येक आयोजन अत्यन्त सुचारु, सफल और सौम्य रूप से सम्पन्न हुआ।
इस सफल आयोजन के लिये विश्वविद्यालय प्रशासन - कुलाध्यक्षा प्रोफ़ेसर रजिता कुलकर्णी, कुलपति प्रोफ़ेसर (ड.) तेजप्रताप, कार्यनिर्याही कुलसचिव प्रोफ़ेसर (ड.) अनिल कुमार शर्मा तथा कार्मिक निर्देशक स्वामी सत्यचैतन्य़ प्रमुख विश्वविद्यालय के समस्त कर्मचारियों और सहयोगियों को हृदय से साधुवाद अर्पित किया। सभी के मन में यह संतोष था कि गुरुदेव की उपस्थिति के साथ बिताए गये ये अनुपम क्षण विश्वविद्यालय की प्रगति के पथ पर एक नई प्रेरणा बनकर सदैव स्मरणीय रहेंगे।




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