एक खोई हुई ऊर्जा, एक लहूलुहान आस्था और पुनर्जागरण की हज़ारों वर्षीय यात्रा
(गुजराट सौराष्ट्रस्थित सोमनाथ मन्दिर का विहंगाबलोकन) मनुष्य का ज्ञान, चाहे कितना भी विस्तृत क्यों न हो जाए, उसके सामने ब्रह्मांड का रहस्य सदैव एक अनुत्तरित प्रश्न बनकर खड़ा रहता है। सभ्यताएँ अपने विज्ञान पर गर्व करती हैं, किंतु अनंत के सामने विज्ञान भी उतना ही विनम्र हो जाता है जितनी आस्था। यही कारण है कि जब विश्वास किसी जनश्रुति को पुष्ट करता है और विज्ञान उसे प्रमाणों से सहलाता है, तब यह संसार अपनी गहनता का एक नया द्वार खोल देता है। भारत, जो असंख्य रहस्यों का प्राचीन पालना है, उसकी मिट्टी में ऐसी अनेक कथाएँ दबी पड़ी हैं, जिनकी प्रतिध्वनि केवल इतिहास ही नहीं, बल्कि भविष्य भी सुनना चाहता है। इस आलेख्य में हम उसी ध्वनि को सुनने का प्रयास करते हैं, एक ऐसे रहस्य की जो धर्म और विज्ञान, पुराण और प्रयोगशाला, आस्था और ऊर्जा सभी को एक ही बिंदु पर लाकर खड़ा कर देता है। यह कथा केवल पढ़ी नहीं जाती यह आत्मा के भीतर उतरती है। प्राचीन भारत के हृदय में उठती तूफ़ानी लहरें (ज्योतिर्लिंगों का वह मनमोहक दृश्य) सन् 1026 का समय। भारत उस युग में महान समृद्धि के चरम पर था। भव्य मंदिर, विशाल नगर, जीवन्...